अजेय….द अनटोल्ड स्टोरी आफ द योगी : साधारण अजय के असाधारण योगी बनने की दास्तान

विपिन बनियाल
-उत्तराखंड का एक बेहद साधारण युवक अजय कैसे असाधारण योगी बन गया। आपने इसे लेकर कई सारी बातें पढ़ी-सुनी होंगी, लेकिन अजेय…..द अनटोल्ड स्टोरी आफ द योगी फिल्म एक नए तरीके से आपका योगी से परिचय कराती है। मेरे लिए यह फिल्म देखने का अनुभव एक भावनात्मक यात्रा पर चलने जैसा रहा। खास तौर पर फिल्म के उस हिस्से की मैं बात कर रहा हूं, जो उत्तराखंड से संबंधित हैं। जहां पर पौड़ी जिले के पंचूर गांव की बात है। जहां पर कोटद्वार काॅलेज का जिक्र है। जहां पर योग और आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश अपने पूर्ण प्रभाव के साथ मौजूद है।
कोटद्वार कॉलेज से जुड़े फिल्म के सीन मुझ जैसे तमाम उन लोगों के दिल के करीब पहुंचते हैं, जिन्होंने नब्बे के दशक में योगी के साथ उस कॉलेज में पढ़ाई की हुई है। दुबई में रहने वाले धनंजय रतूड़ी कहते हैं-फिल्म देखे कई दिन हो गए हैं, लेकिन अब भी यह मेरे दिमाग में छाई हुई है। क्योंकि योगी के साथ मैने काॅलेज में पढ़ाई की है। इसलिए फिल्म से एक खास जुड़ाव महसूस कर रहा हूं। हालांकि फिल्म की शूटिंग कोटद्वार में नहीं हुई है। मगर फिर भी उसके प्रभाव में कमी नहीं है। वो काॅलेज का दौर। पंचूर-यमकेश्वर की ग्रामीम पृष्ठभूमि से निकलकर कोटद्वार जैसे कस्बे में अजय बिष्ट का संघर्ष। काॅलेज के अलावा झंडा चैक पर यार-दोस्तों की चैकड़ी, गाड़ीघाट में किराये के कमरे में रहकर जीवन यापन आदि कई सारी बातें हैं। हालांकि इनमें से कई बातें फिल्म का हिस्सा नहीं बन पाई हैं।
यह फिल्म शांतनु गुप्ता की किताब द मान्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर से प्रेरित है। चूंकि योगी आज की तारीख में राजनीति का एक चर्चित और बड़ा चेहरा है। इसलिए जाहिर तौर पर फिल्म बनाते वक्त निर्माता रितू मैंगी और निर्देशक रवींद्र गौतम ने कई बातों का खास ख्याल रखा है। घटनाओं को फिल्माने में उसी अनुरूप छूट भी ली गई है। मसलन, काॅलेज के छात्र संघ चुनाव में योगी की हार की वजह गड़बड़ी को दर्शाया गया है, जबकि ऐसा नहीं हुआ था। इन सबके बावजूद, योगी के पंचूर, कोटद्वार व ऋषिकेश के जीवन को फिल्म में इस कदर खूबसूरती से उकेरा गया है कि उसका खास प्रभाव उभरता है।
फिल्म का एक सीन है, कोटद्वार काॅलेज में योगी के प्रवेश से जुड़ा है। सीनियर छात्र पूछते हैं-तुम्हें संस्कृत आती है। योगी कहते हैं-मुझे गढ़वाली और हिंदी ही आती है। कोटद्वार का नाम फिल्म में उस वक्त भी उभरता है, जब योगी पहली बार गो रक्षा पीठ में महंत अवैद्यनाथ महाराज से मिलते हैं। उनका परिचय ही वहां पर कोटद्वार आए युवक के तौर पर दिया जाता है। फिल्म में पहाड़ी टच देने के लिए भैजी और लाटा जैसे शब्द भी सुनाई देते हैं।
यकीनन, संन्यासी बनने के लिए घर छोड़ने वाला सीन फिल्म की जान है, लेकिन महंत अवैद्यनाथ के देहांत पर योगी का करूण क्रंदन, संन्यासी बन जाने के बाद योगी की मां का उनके पैर छूने जैसे सीन भावनात्मक उफान लाने का माद्दा रखते हैं। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि योगी बने अनंत जोशी उत्तराखंड से ही हैं। उन्होंने योगी बनने की चुनौती को बखूबी निभाया है। योगी के गुरू बने परेश रावत और योगी के पिता बने पवन मल्होत्रा की अदाकारी दमदार है। महंत अवैद्यनाथ को अक्सर योगी आदित्यनाथ का रिश्तेदार बताया जाता रहा है, लेकिन फिल्म इस रिश्तेे पर कोई बात नहीं करती। अजय से योगी आदित्यनाथ बनने तक के सफर में फिल्म में सिर्फ उनके सीएम बनने तक की कहानी को लिया गया है। फिल्म निर्माण के पीछे योगी की इमेज चमकाने की मंशा को भी तलाशा जा सकता है, लेकिन आग्रह-पूर्वाग्रहों को किनारे रखकर इस फिल्म का आनंद लिया जा सकता है। फिर बाॅक्स आफिस की रिपोर्ट कुछ भी क्यों न हो।