भू-कानूनः पहाड़ से मैदान तक सख्त अहसास, जमीनों की लूट-खसोट पर नकेल कसने की उम्मीदें जगीं

0

उदंकार न्यूज
देहरादून।
राज्य सरकार का भू-कानून सुर्खियों में है। इसके सख्त प्रावधानों के कारण पहाड़ से लेकर मैदान तक जमीनों की लूट-खसोट पर नकेल कसने की उम्मीदें जगी है। अब सरकारी मशीनरी इन प्रावधानों के अनुरूप व्यवस्था बनाने में जुट गई है।
उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) संशोधन विधेयक 2025 को राज्य सरकार ने बजट सत्र के दौरान सदन में पेश किया था, जो घ्वनिमत से पारित हुआ है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के बाद राज्य सरकार का यह दूसरा बड़ा कदम है, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उत्तराखंड के रजत जयंती वर्ष में राज्य सरकार के खाते में यह अहम उपलब्धि जुड़ गई है, जिसके दूरगामी परिणाम आने भी तय माने जा रहे हैं।

भू-कानून में क्या खास, जिससे है आस

01-छूट की खत्म, कडे़ इंतजाम
-कृषि व बागवानी के लिए साढे़ बारह एकड़ भूमि की सीलिंग व्यवस्था से जमीनें खुर्द-बुर्द होने की शिकायतों पर सरकार ने करारी चोट की है। राज्य की धामी सरकार ने हरिद्वार व उधम सिंह नगर को छोड़कर अन्य सभी 11 जिलों में सीलिंग व्यवस्था को ही खत्म कर दिया। यानी पर्वतीय जिलों में अब कृषि व बागवानी के लिए बाहरी व्यक्ति जमीन ही नहीं खरीद पाएगा। जिन दो जिलों हरिद्वार व उधमसिंहनगर में सीलिंग व्यवस्था को खत्म नहीं किया गया है, वहां पर भूमि खरीद की प्रक्रिया को कठिन बना दिया गया है। इन दो जिलों में कृषि व बागवानी के लिए भूमि खरीद की अनुमति पहले डीएम स्तर से दे दी जाती थी। मगर अब इसके लिए शासन से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा, यह प्रावधान भी किया गया है कि कृषि व बागवानी के लिए जो बाहरी व्यक्ति इच्छुक है, उसे संबंधित विभाग से आवश्यकता प्रमाणपत्र भी उपलब्ध कराना होगा।

02-एक मौका, शपथपत्र जरूरी
-भू-कानून नगर निकाय और छावनी परिषद क्षेत्रों में लागू नहीं किया गया है। बाहरी व्यक्ति यदि निकाय क्षेत्रों से बाहर आवास के लिए जमीन खरीदने का इच्छुक हो, तो उसके लिए भी प्रभावी व्यवस्था भू-कानून में कर दी गई है। ऐसा व्यक्ति सिर्फ एक बार ही जमीन खरीद पाएगा और उसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मीटर तक ही होगा। इसके लिए उसे अनिवार्य रूप से शपथपत्र देना होगा।

03-उल्लंघन पर सख्त निगरानी
-भू-कानून में प्रावधान किया गया है कि नगर निकाय क्षेत्रों के अंतर्गत भूमि का उपयोग निर्धारित भू-उपयोग के अनुरूप ही किया जाएगा। अन्यथा, कि स्थिति में संबंधित भूमि राज्य सरकार में निहित कर ली जाएगी। भूमि खरीद के लिए शपथपत्र की अनिवार्यता के पीछे यही मंशा है कि लूूट-खसोट न होने पाए। इसी तरह, पोर्टल के माध्यम से भूमि खरीद प्रक्रिया की निगरानी का प्रावधान रखा गया है। साथ ही, सभी जिलाधिकारियों के लिए यह जरूरी किया गया है कि वह राजस्व परिषद और शासन को भूमि खरीद प्रक्रिया की नियमित रिपोर्टिग करेंगे।

-जनभावनाओं का सम्मान करते हुए भू-कानून लागू किया गया है। जनभावनाएं जिस तरह के सख्त भू-कानून के पक्ष में थी, उसी अनुरूप इसमें प्रावधान किए गए हैं। इस ऐतिहासिक कदम से उत्तराखंड के संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहरों और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।
-पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *