बिरड़ी की भी ऐ त जावा कुई घार लाटा….पहाड़ की इस पुकार में गहरा दर्द है

विपिन बनियाल
-एक अलग मिजाज के फनकार हैं किशन महिपाल। पहाड के असल लोक कलाकार, जो पहाड़ की पीड़ा को अपने गीतों से संबोधित करते हैं। उन्हें आवाज देते हैं। लाटा गीत गंभीर किस्म की उनकी गायिकी का विस्तार है। वो अब खोज-खोजकर ऐसे गीतों को सामने ला रहे हैं, जो पहाड़ से गहरे सरोकार रखते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जबकि वह मदनमोहन डुकलान के सांख्यों बटि कविता को एक सुंदर गीत की शक्ल में सामने लेकर आए थे। अब निरजंन सुयाल की कविता को उन्होंने रंजीत सिंह के साथ मिलकर सुंदर गीत में ढाल दिया है।
इस गीत में निरंजन सुयाल की लेखनी में पहाड़ का गहरा दर्द उभरता है। एक लाइन पर गौर फरमाइये-मिन सदानी झड़दा/टूूटदा पात देखिन/तिन त देखी होलू/क्वी मौल्यार लाटा। शब्दों से उभरे दर्द को चरम पर ले जाने का काम किशन महिपाल की गायिकी करती है। किशन महिपाल ने हर मूड के गानेे गाए हैं। उनकी लोकप्रियता का अलग स्तर है। इन बातों के बीच, पहाड़ के सरोकारों से जुडे़ गीत किशन महिपाल की पहली पसंद बन रहे हैं। हालांकि यह भी सच्चाई है कि डीजे सांग की आपाधापी के बीच इस तरह के गीतों को पसंद करने वाला एक सीमित वर्ग है। मगर लाइक और व्यूज से बेपरवाह किशन महिपाल एक चुनौतीपूर्ण राह पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं और संजीदा गीत पेश कर रहे हैं।
लाटा गीत को किशन आॅडियो फार्मेट में सामने ला चुके हैं। पलायन विषय को लेकर एक शार्ट फिल्म उन्होंने तैयार की है, जिसमें इस गीत का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि पहले शार्ट फिल्म बनाने का किशन महिपाल का कोई इरादा नहीं था। उनकी शार्ट फिल्म के सबसे आखिर में यह गाना बजेगा और छोड़ जाएगा अपने साथ कई सवाल। निश्चित तौर पर ये सवाल उजड़ते और खाली होते पहाड़ के गांवों से संबंधित होंगे। इस गाने और शार्ट फिल्म के निर्माण से जुड़ी तमाम बातों को किशन महिपाल ने मेरे साथ धुन पहाड़ की चैनल के लिए जुटाए गए इंटरव्यू में साझा किया है। आप दिए गए लिंक पर क्लिक करके पूरा वीडियो देख सकते हैं।