उत्तराखंड से कविता कृष्णामूर्ति का वर्षों पुराना रिश्ता

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उदंकार न्यूज
-कविता कृष्णामूर्ति की आवाज की खनक एक अलग असर छोड़ती है। गायिकी का उनका हर अंदाज लाजवाब है। कई वर्षों से वह हिंदी फिल्मों में गा रही हैं। उत्तराखंडी फिल्म संगीत के साथ भी उनका जुड़ाव रहा है, वो भी कुछ एक वर्ष पुराना नहीं, बल्कि 38 वर्ष पुराना। वो भी उस दौर में जबकि उत्तराखंडी सिनेमा अपनी शिशु अवस्था में था। उत्तराखंडी गढ़वाली दूसरी फिल्म कबि सुख कबि दुख में उन्हें पहली बार गढ़वाली गाना गाने का मौका मिला और यह गाना था पहाड़ की लोकप्रिय रामी बौराणी की कहानी पर आधारित। फिल्म के निर्माता निर्देशक बंदेश नौटियाल ने ही इस गाने की धुन तैयार की थी। इसमें कविता कृष्णामूर्ति के साथ दो अन्य सहगायक भी थे। इस गाने को अपनी आवाज में रिकार्ड करके बंदेश नौटियाल ने मुकेश धस्माना को कविता कृष्णामूर्ति के बांद्रा स्थित निवास पर भेजा था। मुकेश धस्माना इस फिल्म के हीरो थे और प्रोडक्शन के कार्य में भी हाथ बंटा रहे थे। धस्माना से कहा गया था कि वह कविता कृष्णामूर्ति को गाने और गढ़वाली के शब्दों के बारे में जानकारी दे दें। धस्माना के मुताबिक-जब उन्होंने कविता कृष्णामूर्ति को गाने के बारे में बताया, तो रामी बौराणी की कहानी ने उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने गढ़वाली के कई शब्दों का अर्थ पूछा और फिर बहुत शानदार ढंग से यह गाना गाय
कबि सुख कबि दुख में गाना गाने के आठ साल बाद एक बार फिर मौका आया, जबकि कविता कृष्णामूर्ति की खनकती आवाज उत्तराखंडी संगीत से जुड़ी। वर्ष 1993 में उर्मि नेगी की फयोंली फिल्म के लिए कविता कृष्णामूर्ति ने गढ़वाली में गाने गाए। इनमें से एक गीत एकल था, जबकि दूसरा युगल। युगल गीत उन्होंने उदित नारायण के साथ गाया था, जिसके बोल थे-मैं छो तेरू भौर। उर्मि नेगी बताती हैं कि कविता कृष्णामूर्ति ने रिकार्डिंग के दौरान बहुत सहयोग किया और अपनापन दिखाया। उन्हें अच्छी तरह से याद है कि कविता कृष्णामूर्ति ने उन्हें दक्षिण भारत का भोजन भी कराया था। कविता कृष्णामूर्ति के साथ उत्तराखंडी फिल्म संगीत के जुड़ाव से संबंधित यह पूरी बात उपलब्ध है धुन पहाड़ की यू ट्यूब चैनल के एक खास वीडियो पर। आपको संबंधित वीडियो देखकर सचमुच आनंद आएगा।

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