चुनाव और अतीत के पन्ने : जब हिचकते हिचकते चुनाव में भिड़ गए थे दो भाई

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1998 के लोस चुनाव में भुवन चंद्र खंडूरी और विजय बहुगुणा थे भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी
शुरु में दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने को असहज रहे, पर बाद में दमदारी से लड़े
उदंकार न्यूज
-उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में वर्ष 1998 के लोक सभा चुनाव को एक खास और दिलचस्प वजह से याद किया जाता है। ये वजह थी चुनाव के मैदान में दो भाइयों की भिड़ंत। एक पाले में भाजपा का झंडा उठाए भुवन चंद्र खंडूरी, तो दूसरी तरफ कांग्रेस का परचम बुलंद करते स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र विजय बहुगुणा। हालांकि चुनाव मैदान में ऑल इंडिया कांग्रेस सेक्युलर के टिकट पर सतपाल महाराज और बसपा से हरक सिंह रावत भी चुनाव मैदान में थे, लेकिन मतदाताओं के बीच दो भाइयों के बीच की जंग की चर्चा ज्यादा थी।
दरअसल, विजय बहुगुणा का ये पहला चुनाव था, जो की भाजपा प्रत्याशी भुवन चंद्र खंडूरी के ममेरे भाई थे। वर्ष 1991 के चुनाव में खंडूरी की जीत के पीछे राम लहर, सैन्य पृष्ठभूमि के अलावा एक और बड़ा कारण उनका स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा का भांजा होना भी था। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी विजय बहुगुणा के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मगर वर्ष 1998 के चुनाव में भाइयों की जंग टाली नहीं जा सकी। हालांकि खंडूरी और बहुगुणा चुनावी जंग में उतरने से पहले काफी असहज थे। पारिवारिक स्तर पर भी इस जंग को रोकने की कोशिश हुई, लेकिन फिर जंग का मैदान सज ही गया। दोनों भाइयों ने फिर युद्ध धर्म का पालन किया और एक दूसरे का मुकाबला किया। हालांकि खंडूरी से इस मुकाबले में बहुगुणा की जगह सतपाल महाराज ने टक्कर ली। खंडूरी 280258 वोट लेकर निर्वाचित हुए, जबकि दूसरे नंबर पर रहे महाराज को 105311 वोट हासिल हुए। विजय बहुगुणा को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा, जिन्हें 63900 वोट मिले। हरक सिंह रावत 41268 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहे। इस चुनाव में चर्चित आई ए एस धर्म सिंह रावत ने भी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें सिर्फ 2242 वोट ही मिल पाए थे।

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