चुनाव और अतीत के पन्ने: सियासी मैदान में चूक गया था जसपाल राणा का निशाना

0

-वर्ष 2009 के लोस चुनाव में टिहरी सीट पर हार गए थे जसपाल राणा
-भाजपा ने उतारा था चुनाव मैदान में, विजय बहुगुणा से पाई शिकस्त
उदंकार न्यूज

-बंदूक्या जसपाल राणा सिस्त साध दे/निसणु साध दे/उत्तराखंड मा बाघ लग्यूं/बाघ मारी दे। उत्तराखंड के प्रख्यात लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी का वर्ष 1999 में यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इसमें जसपाल राणा से निशाना साधकर बाघ के आतंक से मुक्ति दिलाने की अपेक्षा की गई थी। दस वर्ष बाद एक बार फिर जसपाल राणा से अपेक्षा हुई। यह अपेक्षा लोकसभा चुनाव में जीत की थी और भाजपा की तरफ से थी। भाजपा ने गोल्डन ब्वाय जसपाल राणा को टिहरी लोकसभा सीट पर टिकट दिया था। खेेल के मैदान से जसपाल राणा सीधे चुनाव के मैदान में उतर आए थे। पदमश्री जसपाल राणा के सामने कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा थे, जो कि उनसे न सिर्फ उम्र में दुगने थे, बल्कि सियासी अनुभव के मामले मेें भी काफी आगे थे। हालांकि जसपाल राणा राजनीति में नए जरूर थे, लेकिन माहौल उनके लिए नया नहीं था। वजह, एक तो उनके पिता नारायण सिंह राणा भाजपा के वरिष्ठ नेता थे। दूसरा, उनका पारिवारिक संबंध भाजपा के दिग्गज नेता राजनाथ सिंह के साथ था, जो कि उनकी बहन के ससुर हैं।
बहरहाल, जब चुनावी मुकाबला शुरू हुआ, तो दोनों तरफ से खूब जोर आजमाइश हुई। जसपाल राणा पर नरेंद्र ंिसह नेगी का गीत प्रचार का हिस्सा बना, लेकिन चुनाव में जीत विजय बहुगुणा के हाथ लगी। अपने शूटिंग के कैरियर में तमाम रिकार्ड के साथ करीब 600 पदक जीतने वाले जसपाल राणा के हाथ चुनाव में खाली रहे। हार-जीत का अंतर 52,939 वोट का रहा। जसपाल राणा के रूप में भाजपा ने वर्ष 1991 के बाद पहली बार किसी गैर राजशाही पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को टिकट दिया था। यह प्रयोग सफल नहीं हुआ, जबकि उस वक्त 32 वर्ष की आयु वाले जसपाल राणा का युवाओं में बेहद जबरदस्त क्रेज था। वैसे, इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ लहर को भी जसपाल राणा की हार का कारण माना गया। न सिर्फ टिहरी, बल्कि उत्तराखंड की पांचों ही सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *