चुनाव औैर अतीत के पन्नेः ऐसी जीत, जिसने नेगी के छुड़ा दिए थे पसीने

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-1989 के चुनाव में चंद्रमोहन-सतपाल के बीच हुई थी कांटे की टक्कर
-डेढ़ हजार से भी कम वोटों से हुआ था चुनाव में हार-जीत का फैसला
उदंकार न्यूज
-वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में माहौल था। दीवारों पर ये नारे लिखे नजर आ रहे थे-राजा नहीं, फकीर है, देश की तकदीर है। वीपी लहर का असर उत्तराखंड में भी था। कांग्रेस के कद्दावर नेता चंद्रमोहन सिंह नेगी को वीपी सिंह ने जनता दल से जोड़कर गढ़वाल सीट पर टिकट दे दिया। कांग्रेस ने आध्यात्मिक दुनिया से सतपाल महाराज को सीधे चुनावी राजनीति में उतार दिया था। एक तरफ, चंद्रमोहन सिंह नेगी का तर्जुबा था, तो दूसरी तरफ, सतपाल महाराज का जोश। मुकाबला इतना कड़ा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। वीपी सिंह की देशव्यापी लहर के बावजूद चंद्रमोहन सिंह नेगी किसी तरह ये चुनाव जीत पाए।
उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में कांटे की टक्कर वाले मुकाबलों में वर्ष 1989 के इस चुनाव को खास तौर पर याद किया जाता है। ये माना जाता है कि यदि चंद्रमोहन सिंह नेगी चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी न होते, तो डेढ़ हजार से भी कम वोटों के अंतर से हार-जीत वाला ये मुकाबला उनकी पकड़ में नहीं आ सकता था। यूपी के जमाने में पर्वतीव विकास मंत्री रह चुके चंद्रमोहन सिंह नेगी ने जिस वक्त ये चुनाव लड़ा, उससे पहले वे एक बार सांसद भी रह चुके थे। यही नहीं, उन्हें वर्ष 1982 के उस बहुचर्चित उपचुनाव से देशव्यापी पहचान भी मिल चुकी थी, जिसमें उनका मुकाबला हेमवतीनंदन बहुगुणा से हुआ था और उनके चुनाव की पूरी कमान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संभाली थी।
वर्ष 1989 के चुनाव में चंद्रमोहन सिंह नेगी के सामने सतपाल महाराज भले ही सियासत के एकदम नए चेहरे जरूर थे, लेकिन उनकी आध्यात्मिक गुरू की छवि ने मतदाताओं पर गहरा असर डाला था। 35 वर्ष के सतपाल महाराज के राजनीतिक जीवन में सबसे ज्यादा दमदारी से यदि वे कोई चुनाव लडे़, तो वह वर्ष 1989 का ही चुनाव था। यह अलग बात है कि जोश पर तर्जुबा भारी पड़ा। मामूली अंतर से मिली जीत चंद्रमोहन सिंह नेगी के लिए ताउम्र अनमोल रही।

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