‘ना त्यार, ना म्यार’-शेरदा अनपढ़ को विनम्र श्रद्धांजलि, कालजयी रचना पर दीवान-अजय की बेजोड़ जुगलबंदी

विपिन बनियाल
-जीवन दर्शन पर शेर दा अनपढ़ की कालजयी रचना है-ना त्यार, ना म्यार। यानी ना तेरा, ना मेरा। जीवन जैसे जटिल विषय का सरल शब्दों में बखान शेरदा जैसे महान रचनाकार के लिए ही संभव है। जाने माने लोकगायक दीवान कनवाल और डा अजय ढौंडियाल की जोड़ी इस गीत को अब अपने अंदाज में सामने लेकर आई है। अंदाज ऐसा, जिसमें शेरदा अनपढ़ की रचना का पूरा सम्मान मौजूद है। अंदाज ऐसा, जो लोक गीत और संगीत का असल अर्थ प्रभावपूर्ण ढंग से समझाने की क्षमता रखता है।
अभी ज्यादा दिन नहीं बीते, जबकि शेरदा अनपढ़ की रचना पारबती कू मैतुडा देसा को लेकर नेगीदा और प्रहलाद मेहरा सामने आए थे। शेरदा के सम्मान में अब दीवान कनवाल और डा अजय ढौंडियाल की जोड़ी ने कदम आगे बढ़ाया है। डा अजय ढौंडियाल की दिली इच्छा थी कि वह दीवान दा के साथ शेरदा की रचना पर जुगलबंदी करे। दीवान दा के साथ डा अजय ढौंडियाल की वर्षों पुरानी मित्रता भी है।
इस गीत में जुगलबंदी करने वाले दीवान दा के बारे में एक बात सब जानते हैं। दीवान दा का दिल जब तक किसी गाने में रमता नहीं है, तब तक वह उस गाने के साथ जुड़ते भी नहीं है। कुमाऊंनी की पहली फिल्म मेघा आ से लेकर आज तक के उनके संगीत के सफर में यह बात हमेशा कायम रही है।
डा अजय ढौंडियाल पेशे से पत्रकार हैं, लेकिन लोक संगीत के क्षेत्र में भी बराबर पकड़ रखते हैं। अपने गुरू स्वर्गीय हीरा सिंह राणा के गीतों को सामने लाकर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है। शेरदा की कालजयी रचना के साथ जुड़कर दीवान दा और डा अजय ढौंडियाल दोनों ही बेहद उत्साहित हैं।
शेरदा अनपढ़ की कालजयी रचना पर दीवान कनवाल और डा अजय ढौंडियाल की जुगलबंदी बेजोड़ है। गायिकी जबरदस्त है, तो गाने में छोटे-छोटे प्रयोग बड़ा असर छोड़ते हैं। यह प्रस्तुति शेरदा अनपढ़ जैसे महान रचनाकार को विनम्र श्रद्धांजलि है। नए रचनाकारों को राह दिखाने में समर्थ भी है। उत्तराखंडी लोक संगीत के मौजूदा दौर में ऐसे गीतों की बेहद जरूरत है।