उत्तराखंड में भाजपा ने रचा इतिहास, तीसरी बार पांचों सीटों पर खिले कमल

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-यूसीसी लागू करने के फैसले पर जनता की लगी मुहर
-शीर्ष नेतृत्व के सामने सीएम धामी की बढे़गी हैसियत
उदंकार न्यूज
-चार सौ पार के नारे से चूककर खास तौर पर उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन करने वाली भाजपा ने उत्तराखंड में इतिहास रच दिया है। उत्तराखंड के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, जबकि लगातार तीसरी बार पांचों ही सीट किसी दल की झोली में जा गिरी हों। समान नागरिक संहिता लागू करने वाले देश के पहले राज्य उत्तराखंड में भाजपा को मिली जीत के मायने देशव्यापी राजनीति के लिहाज से भी खास माने जा रहे हैं। जाहिर तौर पर यह स्थिति सीएम पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक कद को और बढ़ाने वाली साबित होगी।
भाजपा ने वर्ष 2024 और 2019 में भी उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी। इस बार फिर उसने पांचों सीट जीत कर हैट्रिक लगा दी है। इस बार गढ़वाल सीट से पार्टी ने राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी को मैदान में उतारा था। कांग्रेस के गणेश गोदियाल से उन्हें कड़ी टक्कर बताई जा रही थी, लेकिन इस सीट पर वह बलूनी से पार नहीं पा सके हैं। इसी तरह, हरिद्वार सीट पर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, नैनीताल सीट पर केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट, अल्मोड़ा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा और टिहरी सीट पर माला राज्य लक्ष्मी शाह ने जीत का परचम लहराया है।
जिस तरह से उत्तराखंड के निकटवर्ती राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा का प्रदर्शन निराशजनक रहा है, उसमें उत्तराखंड से निकली विजय को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उत्तराखंड इस मामले में अपने दिल्ली, हिमाचल जैसे पड़ोसी राज्यों के साथ दमदार जीत हासिल करने वाला राज्य बनकर उभरा है।
भाजपा की उत्तराखंड में दमदार जीत न सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण है, कि उसने 5-0 के स्कोर को तीसरी बार हासिल किया है, बल्कि एक और वजह इस जीत को खास बना रही है। दरअसल, चुनाव से पूर्व उत्तराखंड देशभर में समान नागरिक संहिता को लागूू करने वाला पहला राज्य बन गया था। इसकी देशव्यापी चर्चा हुई थी और इसने सीएम पुष्कर सिंह धामी को चर्चाओं में ला दिया था। भाजपा के एजेंडे में समान नागरिक संहिता का विषय बेहद अहम था। इस लिहाज से यहां मिली शानदार जीत से भाजपा के समान नागरिक संहिता को लागू करने के फैसले पर भी जनता की मुहर लगी है। सीएम पुष्कर सिंह धामी की राजनीतिक हैसियत भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने बढ़ना तय है।

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